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Vol:1- એકાંત/एकांत/Ekant_10: Shayri: " उम्मीद या मृगजल "©



Date: 13/10/2005

जुदा  जुदा  रह कर भी मिलन की उम्मीद बची हैं ,

खफ़ा खफ़ा  रह कर भी समझौते की आस बची हैं l 

बहुत तड़पाया 'प्यार 'नाम के इस मृगजल ने फिर भी ,

उस ज़हर  को फिर से एक बार पिने की प्यास बची हैं ll 

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