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Vol:3 - આકાંશ/आकांश /Aakaansh_Poem 2:कुरबान©

एक मुफ़लिस था जिसे परवाँ कहाँ थी किसी बात की,
उसे आपने आपकी हर बात की परवाँ करता कर दिया।

अकेला बंज़र जिंदगी जी रहा था जो,
उसे आपने खुशियों का कारवाँ कर दिया।

ख़त्म हो चूका था वज़ूद जिसका वोह भी,
अपनी पहचान बना रहा है आपसे,

यूँ ही कुर्बान नहीं करता कुछ भी कोई किसी पे,
कैसे हमने जिंदगी को आप पर कुर्बान कर दिया!


 આકાંશ/आकांश /Aakaansh

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