एक शाम बुलाया उन्होंने चाय -कोफ़ी के लिए
पुछा चाय दे के कि काफी है ?
हमने कहा सवाल ये नहीं कि चाय काफी है,
सवाल ये है कि आप सामने बैठे है और रात बाकी है।
तभी सूरज की आखिरी किरन उनकी ज़ुल्फो से सन्न से निकली,
वोह तो मजे से चाय पी रहे है, हम में ये देखकर अब थोड़ी सी जान बाकी है।
वोह बाते कर रही थी, देख रहे हम टकटकी लगाए हुए
कानों को पता नहीं की क्या सुने, दिलोदिमाग में अभी तो ताज़गी सी छाई हुई है।
आखिर में बोले ठीक है कल मिलेंगे ,देर हो गई है ,
सोचा हमने अभी तो ख्वाहिशो से भरी क़ायनात बाकी है।
खो जाते है हम जब ऐसा दीदार होता है ,
लगता है उनका और चाय का मेल ही हमारे लिए तो साकी है।
आप सामने बैठे है और रात बाकी है।...
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