Images

Vol:1- એકાંત/एकांत/Ekant_5: Poem: "देखा हैं "©

2004 -2005 का कोई समय 

जिंदगी से हम क्या माँगे ,
जिंदगी को हम से माँगते हुए देखा हैं !
सपने में हम क्या देखें ,
सपनोंको ख़ाक में जलते हुए देखा हैं !
रात को सोए भी तो क्या हम,
हाँ , रात को हमेशा ढलते हुए देखा है !
उन यादो को हम क्या याद करे,
अपने आप को भूलाते हुए देखा हैं !
वो नये सूरज से आस क्या रखे अगर,
उसे तो सागर में छिपते हुए देखा हैं !
हँसी  को भी अपनाये तो कैसे ,
कई फ़ूलोंको कभी-कभी रोते हुए देखा हैं !
कविता को हम क्या लिखेंगे ,
खुद को एक कविता बनते हुए देखा हैं !

0 comments: