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Corona Crisis- अस्तित्व की दौड़ और मेरे गांव की छांव

Dt: 07-May-20

दो पैसे कमाने मैंने तुझे छोड़ दिया।
जिंदगी की दौड़ में तुज से मुंह मोड़ दिया।

आज वही ज़िन्दगी बचाने की नौबत आ पड़ी है,
अब वो गांव की मिट्टी याद आ रही है, अब वो मां के पल्लू की याद आ रही है।।

तू मेरे वजूद की वज़ह, तू ही मुझे कायम बनाए रखे है।
माफ़ करना मेरी गलतियों को, और जो गीला शिकवा मैंने किए रखे है।

आज पता चला मै तो ज़र्रा हूं उस वतन की सरजमीं का, आज वापस आया जो अपने अस्तित्व को अखंड रखने के लिए, 
आंचल में ऐसे समा लिया तूने कि अभी सभी भौतिकता ए का कोई मोल नहीं, कोई मोह नहीं...

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